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By: G D BHAGAT Senior Editor, UjalaNewsUK
उपराष्ट्रपति धनखड़ का सुप्रीम कोर्ट पर तीखा हमला-अदालतें सीमा लांघ रही हैं
नई दिल्ली, भारत (New Delhi, India) - उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत राष्ट्रपति को दिशा-निर्देश देकर अपनी सीमाओं का उल्लंघन कर रही है। यह टिप्पणी राज्यसभा इंटर्नशिप कार्यक्रम के समापन समारोह में की गई, जिसने देशभर में राजनीतिक और कानूनी हलकों में तूफान ला दिया है।
क्या कहा उपराष्ट्रपति ने?
धनखड़ ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट कैसे राष्ट्रपति को दिशा-निर्देश दे सकता है? यह सीमा लांघने जैसा है।" उन्होंने न्यायपालिका को "सुपर संसद" बताते हुए आरोप लगाया कि न्यायाधीशों की कोई जवाबदेही नहीं है क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता।
टाइम्स ऑफ इंडिया ने कहा - "दुर्भाग्यपूर्ण बयान"
प्रमुख अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने संपादकीय में धनखड़ के बयान को "संवैधानिक पद की गरिमा के विपरीत" बताया। अखबार ने लिखा, "उपराष्ट्रपति द्वारा इस तरह की टिप्पणी करना दुर्भाग्यपूर्ण है, खासकर जब वह भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में बोल रहे थे।"
क्या सुप्रीम कोर्ट के पास है यह अधिकार?
संविधान विशेषज्ञों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 13, 32 और 136 के तहत यह अधिकार है कि वह किसी भी कार्यकारी या विधायी कार्रवाई की संवैधानिक वैधता की समीक्षा कर सके। ऐतिहासिक एस.आर. बोम्मई केस (1994) में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि राष्ट्रपति के आदेशों की भी न्यायिक समीक्षा हो सकती है यदि वे असंवैधानिक या मनमाने हैं।
राजनीतिक गलियारों में मचा हड़कंप
धनखड़ के बयान के बाद राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। विपक्षी दलों ने इसे "संवैधानिक संकट" बताया है, जबकि सत्ता पक्ष के नेताओं ने उपराष्ट्रपति के विचारों को "विचारणीय" कहा है।
यह विवाद संविधान के मूल ढांचे और संस्थाओं के बीच शक्ति संतुलन पर गंभीर बहस छेड़ देता है।
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