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By: G D BHAGAT Senior Editor, UjalaNewsUK
उत्तराखंड में शिक्षा नीति पर बवाल: 1 साल का पेनल्टी?
देहरादून, उत्तराखंड (Dehradun, Uttarakhand) - उत्तराखंड में स्कूल प्रवेश से जुड़ी उम्र सीमा को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने "एक दिन की देरी पर एक साल की सजा" जैसी स्थिति पर सवाल उठाते हुए शिक्षा विभाग को नोटिस जारी किया है।
क्या है पूरा मामला? NEP-2020 के नियम बने विवाद की जड़
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के तहत निर्धारित किया गया है कि पहली कक्षा में प्रवेश के लिए बच्चे ने 1 अप्रैल तक 6 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो। उत्तराखंड सरकार ने 8 मई 2024 को इस नियम को लागू करने का आदेश जारी किया था। लेकिन अब यह नियम "बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़" बनता जा रहा है।
बाल अधिकार आयोग ने उठाए सवाल, शिक्षा विभाग को भेजा नोटिस
राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष गीता खन्ना ने इस मामले में महानिदेशक-शिक्षा झरना कमठान को कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। आयोग का मानना है कि "एक दिन की उम्र कम होने पर बच्चे को पूरे एक साल का इंतजार करना पड़े, यह न्यायसंगत नहीं है"। आयोग ने नियमों में लचीलेपन की सिफारिश की है।
शिक्षकों और अभिभावकों में बढ़ रहा है असंतोष
इस सख्त नियम के कारण कई मामले सामने आए हैं जहां:
- 31 मार्च को 6 साल पूरे करने वाले बच्चे को प्रवेश मिल जाता है
- जबकि 1 अप्रैल को 6 साल पूरे करने वाले बच्चे को अगले साल तक इंतजार करना पड़ता है
- अभिभावकों का कहना है कि यह नियम "बच्चों के मौलिक शिक्षा के अधिकार" का उल्लंघन है
शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि "इस मुद्दे पर पुनर्विचार किया जा रहा है" और जल्द ही नए दिशा-निर्देश जारी किए जा सकते हैं।
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